सरकार की सलाह के बिना उपराज्यपाल कर सकते हैं नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल सरकार से सलाह लिए बिना नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति कर सकते हैं। कोर्ट के फैसले के बाद आप सरकार को तगड़ा झटका लगा है। दिल्ली सरकार ने मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति करने के उपराज्यपाल के फैसले को चुनौती देते हुए कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए बीते वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दिल्ली नगर निगम में 250 निर्वाचित और 10 नामांकित सदस्य हैं। दिल्ली सरकार ने आरोप लगाया था कि उपराज्यपाल ने उसकी सहायता और सलाह के बिना 10 सदस्यों को नामित किया था। शीर्ष अदालत में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पादरीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एमसीडी की महापौर शेली ओबेरॉय की एक याचिका पर सुनवाई की थी। शेली ओबेरॉय ने अपनी याचिका में मांग की है कि नगर निगम को अपनी स्थायी समिति के कार्यों का प्रयोग करने की अनुमति दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल को एमसीडी में ‘एल्डरमैन’ नामित करने का अधिकार देने का मतलब है कि वह निर्वाचित नगर निकाय को अस्थिर कर सकते हैं। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने एमसीडी में ‘एल्डरमैन’ को नामित करने के उपराज्यपाल के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए यह बात कही थी।
दिल्ली सरकार की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि 1991 में संविधान के अनुच्छेद 239AA के लागू होने के बाद से यह पहली बार है कि उपराज्यपाल ने चुनी हुई सरकार को पूरी तरह दरकिनार करते हुए इस तरह से ‘एल्डरमैन’ को नामित किया है। इसमें यह भी कहा गया कि एलजी मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं। यदि कोई मतभेद होता है, तो वह इस मुद्दे को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। याचिका में कहा गया कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ दो ही विकल्प हैं, पहला- चुनी हुई सरकार की ओर से सुझाए गए गए नामों को मंजूर किया जाए और दूसरा- अगर प्रस्ताव पर सहमति न बने तो इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में इस मामले में दिल्ली एलजी से जवाब मांगा था।