समाज के लिए क्या सरकार आपकी जमीन ले सकती है? समझिए पूरा विवाद जिस पर 9 जजों की बेंच सुनाने वाली है फैसला

ये कहां की रीत है जागे कोई सोए कोई, रात सबकी है तो सबको नींद आनी चाहिए – शायर मदन मोहन मिश्रा ‘दानिश’ का यह शे’र 30 साल पुराने एक मामले को समझने में कुछ मदद कर सकता है. जो भारत में सामाजिक न्याय और निजी संपत्ति पर सरकार का अधिकार किस कदर है, इससे जुड़े दशकों पुराने विवाद की दशा और दिशा तय करेगा.

इस पर सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते से पहले फैसला सुना सकता है. मामला है निजी संपत्ति पर सरकार के अधिकार का. मिश्रा के शे’र की रौशनी में कहें तो सवाल है कि क्या ‘रात’ पर सभी का हक समान रूप से है या एक की ‘नींद’ इतनी सर्वोपरि है कि दूसरा जाग रहा है या सो रहा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता? शे’र ने क्या मामला और उलझ दिया.

एक सवाल पर फैसला होना है – सवाल ये कि किसी व्यक्ति या समुदाय की निजी संपत्ति को समाज की भलाई के लिए सरकार अपने नियंत्रण में ले सकती है या नहीं? चीफ जस्टिस चंद्रचूंड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच सुनवाई पूरी कर चुकी है. चूंकि जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं, फैसला कभी भी आ सकता है.

भारत में असमानता का आलम – 2023 में ऑक्सफैम की आई एक रिपोर्ट की मानें तो भारत के टॉप 5 फीसदी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का कम से कम 60 फीसदी हिस्सा था. जबकि मुफलिसी का जीवन जी रही 50 फीसदी आबादी देश की महज 3 फीसदी संपत्ति के साथ जिंदगी की जद्दोजहद को मजबूर है.

निजी संपत्ति भी समाज ही का है? – असमानता की इस तरह की खाई को पाटने के सवाल पर लोकसभा चुनाव में जिस वक्त भाजपा और कांग्रेस बहस कर रहे थे, तभी सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संवैधानिक पीठ इस सवाल पर सुनवाई कर रही थी कि क्या किसी की निजी संपत्ति को कब्जे में ले कर सरकार उसे जरूरतमंद लोगों में बांट सकती है?

विवाद की जड़ – अनुच्छेद 39B की व्याख्या

संपत्ति के बंटवारे वाले इस विवाद की जड़ में है संविधान का अनुच्छेद 39बी. अदालत की अलग-अलग बेंच इसी अनुच्छेद की व्याख्या में उलझती रही है. दरअसल 39बी संविधान के चौथे भाग में आता है.

संविधान का ये हिस्सा डीपीएसपी (डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टेट पॉलिसी यानी नीति निर्देशक तत्त्व) कहलाता है. जैसा इसके नाम ही से स्पष्ट है, डीपीएसपी में कही गई बातों को लागू करने के लिए सरकार बाध्य नहीं है. ये महज इशारा है, जिसे ध्यान में रखकर नीति बनाने की अपेक्षा संविधान को है.

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