RBI MPC Meet: क्या होती है मॉनेटरी पॉलिसी, रेपो रेट और CRR? जिसका जिक्र RBI के गवर्नर ने किया
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (Monetary Policy Committee) की बैठक में कई अहम फैसले लिए. इस दौरान उन्होंने रेपो रेट को जस का तस रखा, वहीं कैश रिजर्व रेशियो (CRR) को घटाकर 4% कर दिया. पहले यह 4.5 फीसदी था. ये टर्म, जैसे रेपो रेट और CRR, तकनीकी लग सकते हैं, लेकिन इनका हमारे डेली जीवन पर डायरेक्ट असर पड़ता है. ऐसे में आइए इसका पोस्टमार्टम करते है.
RBI और मॉनेटरी पॉलिसी
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) देश के सभी बैंकों और अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है. इसकी शुरुआत 1 अप्रैल साल 1935 को हुई थी. वहीं साल 1937 में इसका हेड ऑफिस कोलकाता से मुंबई ट्रांसफर हो गया. साल 1949 में इसे भारत सरकार के अधीन कर दिया गया.
RBI की Monetary Policy कमेटी हर दो महीने में मीटिंग करती है और यह तय करती है कि ब्याज दरों को घटाना या बढ़ाना है. यह फैसले देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने और महंगाई पर नियंत्रण रखने के लिए लिए जाते हैं.
रेपो रेट क्या है?
रेपो रेट वह दर है, जिस पर RBI बैंकों को शॉर्ट-टर्म लोन उपलब्ध कराता है. जब बैंकों को पैसे की जरूरत होती है, तो वे अपनी सरकारी सिक्योरिटीज को गिरवी रखकर RBI से पैसा लेते हैं. RBI इस पर जो ब्याज वसूलता है, उसे रेपो रेट कहते हैं.
रेपो रेट का असर
अगर रेपो रेट बढ़ा दी जाती है, तो बैंकों से कर्ज लेना महंगा हो जाता है, जिससे बाजार में पैसे की कमी होती है और महंगाई कम होती है. रेपो रेट घटने पर बैंकों से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है, जिससे लोन लेना आसान होता है.
CRR (कैश रिजर्व रेशियो) क्या है?
CRR का मतलब है कैश रिजर्व रेशियो. यह वह हिस्सा है, जो बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत, नकद के रूप में RBI के पास रखना होता है. जब CRR बढ़ता है, तो बैंकों के पास पैसा कम होता है, जिससे वे लोन देने में कटौती करते हैं. यह सुनिश्चित करता है कि बैंक अपनी सभी जमाओं को तुरंत खर्च न करें और इमरजेंसी की स्थिति में पैसा उपलब्ध रहे.
मॉनेटरी पॉलिसी का महत्व
मॉनेटरी पॉलिसी के जरिए RBI महंगाई को नियंत्रित करता है, बाजार में नकदी की मात्रा तय करता है और देश की आर्थिक स्थिरता बनाए रखता है. रेपो रेट और CRR में बदलाव सीधे तौर पर हमारी उधारी, लोन की EMI और सेविंग पर असर डालते हैं.