भारत अब बन सकता है विश्वगुरु, लेकिन कैसे? RSS प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने विस्तार से बताया
“हम अनादि काल से एक-दूसरे के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से रह रहे हैं. अगर दुनिया को इस तरह रहना है तो भारत को भी सद्भाव का वैसे ही मॉडल बना कर रखना होगा.” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने 19 दिसंबर, 2024 को पुणे में सहजीवन व्याख्यानमाला के 23वें समारोह में यह संदेश दिया. वे ‘भारत-विश्वगुरु’ विषय पर संबोधित कर रहे थे. यहां उन्होंने हिंदू राष्ट्र की पहचान के रूप में समावेशी समाज को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि भारत एक ऐसा देश भी है जो सद्भाव से रह सकता है. उन्होंने विश्वगुरु भारत बनने की सामूहिक आकांक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए चुनौतियों और संभावित समाधानों को व्यापक रूप से रेखांकित किया.
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के मूलभूत सिद्धांतों की व्याख्या करने के अलावा उन्होंने विश्वगुरु बनने की पूर्व निर्धारित शर्तों के बारे में भी बताया. उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत इस सवाल से किया- “क्या दुनिया को वाकई विश्वगुरु बनने की जरूरत है? आज दुनिया जिस स्थिति में है, क्या उसमें ऐसी कोई जरूरत है?” उन्होंने कहा कि आज हम हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं. अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे का विकास हो रहा है. दुनिया तकनीकी रूप से तेजी से बदल रही है. ऐसे में किसी को भी लग सकता है कि सब कुछ ठीक चल रहा है. लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? इसके आगे उन्होंने कहा कि इसके उलट आज लोगों की सेहत, पर्यावरण नुकसान और वैश्विक विवादों को देखें तो इसका जवाब है- नहीं.
पश्चिम का विश्वास सबसे ताकतवर होने में
डॉ. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में पिछले दो हजार सालों में इंसानी सभ्यता के विकास का भी जिक्र किया और इसका अधिक गहराई से मूल्यांकन प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि पश्चिम केवल सबसे ताकतवर होने में विश्वास करता है. वहां लोग सोचते हैं- तुम अपनी देखो, मैं केवल अपने बारे में सोच सकता हूं. वहां हर किसी को अपना, अपनी जरूरत का ध्यान रहता है. प्रकृति या पर्यावरण के बारे में सोचना मेरा काम नहीं है. अगर मैंने अपने जीवन के लिए प्रकृति को नष्ट भी किया तो यह मेरे लिए उचित होगा, क्योंकि मुझे जीना है.