भ्रष्टाचार की कहानी : सरकारी इंजीनियर का काला साम्राज्य, आय से 200 प्रतिशत ज्यादा प्रॉपर्टी

रविवार की सुबह जब एसीबी की टीमें जोधपुर, जयपुर और उदयपुर के अलग-अलग इलाकों में दस्तक दे रही थीं, तब कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक सरकारी इंजीनियर के घर से भ्रष्टाचार का इतना बड़ा जाल खुलेगा। दीपक मित्तल, जो एक साधारण सरकारी इंजीनियर की कुर्सी पर बैठा था, उसकी फाइलों में सरकारी सड़कों के नक्शे तो थे, लेकिन हकीकत में उसने अपनी खुद की आलीशान ‘सड़कें’ बिछा रखी थीं—काले धन की सड़कें!
वर्दी का इस्तेमाल, दौलत की बिसात

दीपक मित्तल का नाम भले ही सरकारी फाइलों में ‘जनता का सेवक’ लिखा था, लेकिन असल में वह सिर्फ अपनी तिजोरी भरने में लगा हुआ था। राजस्थान के छह शहरों और हरियाणा तक फैला उसका काला साम्राज्य किसी कारोबारी से कम नहीं था। जयपुर, उदयपुर, अजमेर, ब्यावर और जोधपुर में 16 प्लॉट्स, बेहिसाब बैंक अकाउंट्स और करोड़ों की संपत्ति… ये सब महज एक सरकारी वेतन से मुमकिन नहीं था।

एसीबी को जब पहली बार शिकायत मिली कि यह इंजीनियर अपनी आमदनी से कई गुना ज्यादा कमाई कर चुका है, तब किसी को यकीन नहीं हुआ। लेकिन जब जांच आगे बढ़ी तो चौकाने वाले खुलासे हुए। मित्तल ने फरीदाबाद में भी काले धन का ठिकाना बना रखा था, जहां उसने अपने भाई के नाम से पैसा लगा रखा था।

सफेद कॉलर में छुपा काला खेल

सरकारी नौकरी में घुसते ही कुछ लोग इसे सेवा का माध्यम मानते हैं, तो कुछ इसे ‘अवसर’ समझकर अपनी तिजोरी भरने का तरीका बना लेते हैं। दीपक मित्तल दूसरा नाम था—उस भ्रष्ट सिस्टम का, जो जनता की गाढ़ी कमाई से बनी सड़कों और इमारतों में अपनी कमीशन की ईंटें जोड़ता रहा। सरकारी कॉन्ट्रैक्ट, फर्जी बिलिंग, और रिश्वत के खेल ने उसे 203% ज्यादा संपत्ति का मालिक बना दिया।

एसीबी जब उसके घर पहुंची, तो वहां नोटों की गड्डियां और जायदाद के दस्तावेजों का ढेर मिला। करोड़ों की यह काली कमाई इस बात का सबूत थी कि किस तरह एक सरकारी इंजीनियर सिस्टम को दीमक की तरह चाट रहा था।

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