कश्मीर में बुलेट नहीं बैलेट के भरोसे अलगाववादी? इंजीनियर राशिद की जीत बनी उम्मीद की किरण

जम्मू-कश्मीर की सियासी फिजा बदल गई है. कश्मीर की सियासत में लंबे समय तक अलगाववादी नेता चुनावों का बहिष्कार करते रहे हैं और लोगों को वोट देने पर जान से मार देने की वो धमकी दिया करते थे. अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में अलगाववादी अब बुलेट छोड़, बैलेट की राह पर लौटते नजर आ रहे हैं. इस बार कई अलगाववादी विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने के लिए उतरे हैं, जो घाटी की सियासत में एक बड़े बदलाव को संकेत देती नजर आ रही है.

अलगाववादियों के विधानसभा चुनाव लड़ने के पीछे उम्मीद की किरण इंजीनियर राशिद बनकर उभरे हैं. 2024 लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन जैसे नेताओं के खिलाफ अलगाववादी नेता इंजीनियर राशिद ने चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत दर्ज कर सांसद बने. इसी के चलते ही अब अलगाववादियों ने विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने का फैसला किया है. प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी और मीरवाइज उमर फारूक की अगुआई वाली हुर्रियत से जुड़े रहे कई नेताओं ने विधानसभा चुनाव में ताल ठोक रखी है.

जमात-ए-इस्लामी के 3 पूर्व नेता

जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) के चार पूर्व नेताओं ने विधानसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय पर्चा दाखिल कर रखा है. पुलवामा विधानसभा सीट से तलत मजीद, कुलगाम विधानसभा सीट से सयार अहमद रेशी, देवसर विधानसभा सीट से नजीर अहमद बट विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं. यह नेता जमात-ए-इस्लामी से जुड़े रहे है, जिसे सरकार ने प्रतिबंधित कर रखा था. शोपियां से नामांकन करने वाले सरजन बरकती का पर्चा रद्द कर दिया गया है.

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