अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस: महिलाओं को 1854 में मिला था शिक्षा का अधिकार, जानें 170 साल में कितनी बदली स्थिति

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर शुक्रवार, 11 अक्टूबर को देशभर में कार्यक्रम हो रहे हैं। महिला सशक्तिकरण और उनके सम्मान पर बात हो रही है। हालांकि, लिंग भेद, बाल विवाह, हिंसा और दहेज प्रथा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी क्षमता का लोहा मनवा रही हैं। शिक्षित होकर वह चिकित्सा, तकनीक, कानून सहित हर पेशा में अपना प्रभाव छोड़ रही हैं। राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी बाखूबी निभा रही हैं।

 

 

देश की शासन सत्ता में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने सरकार ने महिला आरक्षण का बिल पास किया है। हालांकि, मोदी सरकार ने इसे लागू करने की टाइमलाइन 2029 में दी है। पंचायती राज व्यवस्था और सरकारी नौकिरयों में महिला आरक्षण पहले से लागू है। हर राज्य में आरक्षण का यह दायरा अलग है। कामकाजी महिलाओं की दृष्टि से दमनद्वीव, दिल्ली और झारखंड जैसे छोटे राज्य आगे हैं। शिक्षा के मामले में केरल की महिलाएं अन्य राज्यों की अपेक्षा ज्यादा समृद्ध हैं।

बीच में पढ़ाई छोड़ देती हैं बेटियां 
राजस्थान, बिहार और मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में कम उम्र में शादी, गरीबी और भेदभाव के चलते बड़ी संख्या में बेटियां बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। स्कूल ड्रॉप आउट के चलते उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। स्कूल-कॉलेज में ड्रॉप आउट दर छात्रों की तुलना में ज्यादा है।

कोलकाता विवि पहला संस्थान 
भारत में महिलाओं को पढ़ने लिखने का अधिकार 1854 में मिला था। कोलकाता विश्वविद्यालय महिलाओं को शिक्षा देने वाला पहला संस्थान बना। 1986 में इसे राष्ट्रीय नीति में शामिल कर हर राज्य में महिला शिक्षित अनिवार्य की गई। केंद्र सरकार ने इसके लिए कई योजनाएं बनाईं।

 

 

देश में लिंगानुपात और जन्मदर
भारत में लिंगानुपात और लड़कियों के जन्मदर पर 2015 से आपेक्षित सुधार हुआ है। 2011 में देश का औसत लिंगानुपात 111.2 था, जो 2019-21 में बढ़कर 108.1 हो गया है। अब 1000 लड़कों पर 925 लड़कियां पैदा होती हैं। केरल में लिंगानुपात सर्वाधिक 1084 और दमनदीव में सबसे कम 618 है।

बाल विवाह में राजस्थान आगे
देश में हर साल बाल विवाहों की सख्यां बढ़ रही है। राजस्थान में 82 प्रतिशत विवाह 18 साल से पहले ही हो जाती है। वहीं बच्चियां 18 वर्ष की उम्र से पहले ही मां बन जाती है। जिसके कारण उनकी मौत हो जाती है। बता दे बाल विवाह को लेकर देश में राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सबसे खराब स्थिति में है।

कामकाजी महिलाएं मिजोरम में ज्यादा 
भारत में कामकाजी महिला सबसे अधिक 59% हैं, वही जम्मू कश्मीर में इनकी संख्या सबसे कम 7.9% है। सर्वाधिक कामकाजी महिलाएं दिल्ली में रहती हैं। लेकिन कुल आबादी के अनुपात में देखें यह आंकड़ा मिजोरम में सर्वाधिक है। महिलाएं यहां राज्य के कार्यबल का लगभग 59 फीसदी हैं। जबकि, दिल्ली में यह आंकड़ा 11.7% ही है।

प्रदेश/केंद्र शासित प्रदेश कामकाजी महिलाएं 
मिजोरम 59%
झारखंड 48.2%
सिक्किम 48.2%
बिहार 17.8%
मध्य प्रदेश 17.2%
लक्षद्वीप 15.5%
दमन और दीव 15.2%
हिमाचल प्रदेश 15.1%
उत्तर प्रदेश 12%
दिल्ली 11.7%
पंजाब 9.4%
चंडीगढ़ 8.1%
जम्मू और कश्मीर 7.9%

भारत में हर घंटे 51 महिला अपराध 
सरकारें बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम चलाती हैं, लेकिन महिला अपराधों पर नियंत्रण नहीं लगा पातीं। जिस कारण दुष्कर्म और हत्या जैसी गंभीर वारदातों की संख्या लगातार बढ़ रही है। भारत में हर साल 4 लाख से ज्यादा महिला हिंसा के मामले दर्ज किए जाते हैं। इनमें दुष्कर्म, छेड़छाड़, एसिड अटैक, किडनैपिंग और दहेज जैसे अपराध शामिल हैं। एनसीआरबी के मुताबिक, 12 महीने में 4,45,256 मामले दर्ज हुए हैं। यानी हर घंटे 51 महिला अपराध हुए।

 

 

महिला अपराध में दिल्ली-हरियाणा आगे 
भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध दर हरियाणा में 118 सबसे ज्यादा है। वही  तेलंगाना 117 और पंजाब में  115 है। दिल्ली में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध दर 144 है, जो कि हरियाण से भी अधिक है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, नागालैंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध दर सबसे कम 4.6 है. मणिपुर में यह अपराध दर 15.6 दर्ज की गई है। वही तमिलनाडु में यह दर 24 दर्ज की गई है। जो भारत में सबसे कम अपराध दरों में हैं।

महिला हिंसा रोकने सख्त कानून 
सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी कानून भी बनाए। इनमें घरेलू हिंसा अधिनियम-2005, दहेज निषेध अधिनियम-1961, महिलाओं का अभद्र चित्रण अधिनियम-1986, कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न के खिलाफ अधिनियम, 2013 और बाल विवाह अधिनियम शामिल है। साइबर अपराध पोर्टल पर अश्लील सामग्री की रिपोर्ट दर्ज करा सकते हैं।

लिंगभेद और भ्रूण परीक्षण अपराध 
देश में भ्रूण हत्‍या और लिंग परीक्षण कानूनी अपराध है। ऐसा करने पर 3 से 5 वर्ष तक की जेल और 1 लाख तक जुर्माने का प्रावधान है। विवाह, पोषण, स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा जैसी जरूरतों में भी बेटियों संग भेदभाव किया जाता है। सरकार ने लिंग चयन के खिलाफ सख्त कानून बनाया है।

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