मध्यप्रदेश में आठ वर्ष से रुके प्रमोशन को शुरू करने की कवायद सरकार ने शुरू कर दी है। बीच का रास्ता निकालने के लिए राज्य कर्मचारी संगठनों से वन-टू-वन चर्चा की जा रही है। ज्यादातर संगठन पदाधिकारियों ने प्रमोशन शुरू करने की वकालत की है। साथ ही यह भी बताया कि प्रमोशन न होने से कर्मचारियों में नाराजगी है। उन्हें आर्थिक नुकसान भी हो रहा है।
2002 में बने थे प्रमोशन नियम
मध्यप्रदेश में वर्ष 2016 से राज्य के अधिकारी-कर्मचारियों के प्रमोशन नहीं हो रहे। यह स्थिति हाईकोर्ट द्वारा प्रमोशन नियम निरस्त करने के कारण बनी है। प्रमोशन नियम 2002 में बने थे। इसमें पेंच आरक्षण को लेकर था। आरक्षित वर्ग के कर्मियों को नियुक्ति में आरक्षण का लाभ मिल रहा है, सरकार ने इन्हें प्रमोशन में भी आरक्षण का लाभ दे रही थी।
अन्य कर्मचारियों को ऐतराज था। तर्क दिया गया कि किसी व्यक्ति को बार-बार आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने प्रमोशन नियम निरस्त कर दिए थे।
सरकार ने प्रमोशन ही रोक दिए
कोर्ट ने प्रमोशन देने से कभी इनकार नहीं किया, बल्कि कोर्ट ने विसंगति दूर करने को कहा था, लेकिन सरकार ने प्रमोशन ही रोक दिए। कर्मचारियों का तर्क है कि सरकार जिसे चाह रही, उन्हें प्रमोशन दे रही है, पशु चिकित्सा सहित अन्य विभाग तो ऐसे हैं जहां रिटायरमेंट के एक दिन पहले प्रमोशन दिया गया।
एक जगह होगा सर्विस रिकार्ड
राज्य शासन के विभिन्न विभागों में पदस्थ अधिकारी-कर्मचारियों का डेटा अब एक प्लेटफॉर्म पर रहेगा। इसके लिए विशेष सॉटवेयर तैयार किया गया है। वर्तमान में शासकीय अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन-भत्ते, वेतनमान का निर्धारण, समयमान इत्यादि कार्यों के ऑनलाइन निपटारे के लिए वित्त द्वारा आइएफएमआइएस प्रणाली लागू है।