मध्य प्रदेश में साइबर अपराध के मामले में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। साइबर पुलिस की जांच में खुलासा हुआ है कि ठग अपने शिकार को रैंडम कॉल्स से नहीं चुनते, बल्कि उनके पास पहले से ही एक सुनियोजित योजना होती है।
सेल्समैन का डेटा बना साइबर ठगी का जरिया
पुलिस अधिकारियों के अनुसार, साइबर अपराधी उन लोगों को निशाना बना रहे हैं जिनके बैंक खातों में बड़ी रकम होती है। ये जानकारी उन्हें लोन और क्रेडिट कार्ड बेचने वाले सेल्सपर्सन के डेटाबेस से मिलती है। ठग इन डेटा का इस्तेमाल कर पीड़ितों की पहचान करते हैं और उनके बैंकिंग ट्रांजेक्शन्स की जांच के बाद उन्हें कॉल करते हैं।
हाई-प्रोफाइल लोग बने मुख्य शिकार
जांच में यह भी पाया गया कि डिजिटल गिरफ्तारी के अधिकतर मामले हाई-प्रोफाइल लोगों से जुड़े हैं। इनमें उद्यमी, सेवानिवृत्त अधिकारी और निजी क्षेत्र के उच्च पदों पर आसीन लोग शामिल हैं। हालांकि, निम्न आय वर्ग के लोग इस ठगी का कम शिकार बने हैं।
संगठित नेटवर्क का खुलासा
साइबर पुलिस ने बताया कि देशभर में सक्रिय साइबर ठगों के गिरोह संगठित तरीके से काम कर रहे हैं। इनके अलग-अलग दल होते हैं, जिनमें से एक मजदूरों के नाम पर फर्जी बैंक खाते खोलने का काम करता है, जबकि दूसरा संभावित लक्ष्यों का डेटा इकट्ठा करता है।
सावधानी ही बचाव
पुलिस ने चेतावनी दी है कि लोग सार्वजनिक स्थानों पर लोन, क्रेडिट कार्ड या अन्य वित्तीय उत्पादों की पेशकश करने वाले सेल्सपर्सन के साथ अपने बैंक खाते और पहचान दस्तावेज साझा करने में सतर्क रहें। एसीपी साइबर क्राइम सुजीत तिवारी ने कहा कि बैंकिंग जानकारी और व्यक्तिगत दस्तावेज केवल विश्वसनीय व्यक्तियों को ही दें, ताकि साइबर ठगी से बचा जा सके।