भोपाल, 16 जनवरी:
मध्य प्रदेश में नाम बदलने की राजनीति तेजी से जोर पकड़ रही है। मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व में हाल के दिनों में कई क्षेत्रों और गांवों के नाम बदले गए हैं। अब, हिंदू संगठन संस्कृति बचाओ मंच ने 55 क्षेत्रों के नाम बदलने की मांग करते हुए मुख्यमंत्री को एक सूची सौंपी है। इन क्षेत्रों के नामों को “गुलामी के प्रतीक” बताते हुए संगठन ने आग्रह किया है कि इन्हें भारतीय संस्कृति और गौरव को प्रदर्शित करने वाले नामों से प्रतिस्थापित किया जाए।
हिंदू संगठन का तर्क: गुलामी का प्रतीक नाम बदलें
संस्कृति बचाओ मंच के प्रमुख चंद्रशेखर तिवारी ने मुख्यमंत्री को सौंपे पत्र में कहा है कि जिन क्षेत्रों के नाम विदेशी आक्रांताओं के इतिहास से जुड़े हैं, उन्हें बदलना आवश्यक है। उन्होंने कहा, “नाम गुलामी का प्रतीक नहीं होना चाहिए। यदि नाम रखना है, तो इसे भारतीय महापुरुषों के नाम पर रखा जाए, जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “शहनाई वादक बिस्मिल्ला खां और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर क्षेत्रों के नाम रखना अधिक प्रासंगिक होगा। लेकिन शाहजहां, जहांगीर और औरंगजेब जैसे नामों का क्या महत्व है, जो आक्रांताओं की मानसिकता को दर्शाते हैं?”
सूची में शामिल क्षेत्र
भेजी गई सूची में राजधानी भोपाल के शाहजहांनाबाद, पीरगेट, जहांगीराबाद, ईदगाह हिल्स, हलाली डैम, बरखेड़ी, पिपलिया जाहर पीर, मुबारकपुर, उमरावगंज, सलामतपुर और शाहबाद के नाम शामिल हैं। इसके अलावा रायसेन जिले के गोहरगंज, नीरगंज, बेगमगंज, गैरतगंज, औबेदुल्लागंज और सुल्तानपुर का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा गया है।
मुख्यमंत्री ने बदले 14 क्षेत्रों के नाम
हाल ही में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उज्जैन और शाजापुर जिलों में कई क्षेत्रों के नाम बदलने की प्रक्रिया पूरी की। उज्जैन जिले में गजनी खेड़ी का नाम “मां चामुंडा नगरी”, जहांगीरपुर का नाम “जगदीशपुर” और मौलाना का नाम “विक्रम नगर” रखा गया।
इसके बाद, शाजापुर जिले में मोहम्मदपुर मछनाई का नाम “मोहनपुर”, ढाबला हुसैनपुर का नाम “ढाबला राम”, और मोहम्मदपुर पवाड़िया का नाम “रामपुर पवाड़िया” किया गया। अन्य गांवों जैसे खजूरी अलाहदाद, हाजीपुर और निपानिया हिसामुद्दीन के नामों को भी बदलकर सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के अनुरूप रखा गया।
राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण
नाम बदलने की इस प्रक्रिया को लेकर समाज और राजनीतिक गलियारों में तीखी बहस छिड़ी हुई है। आलोचक इसे “राजनीतिक ध्रुवीकरण” का प्रयास मानते हैं, जबकि समर्थकों का दावा है कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास को सही स्वरूप देने का प्रयास है।
आगे की रणनीति
विशेषज्ञों का मानना है कि नाम बदलने की इस प्रक्रिया से प्रशासनिक दस्तावेजों में बड़ा बदलाव आएगा। हालांकि, यह देखना बाकी है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव हिंदू संगठन की मांग पर क्या रुख अपनाते हैं।
निष्कर्ष:
नाम बदलने की इस राजनीति ने राज्य में एक नई बहस को जन्म दिया है। यह प्रक्रिया न केवल ऐतिहासिक संदर्भों को बदलने का प्रयास है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि क्षेत्रीय पहचान और सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर किस तरह का विमर्श जारी है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि मुख्यमंत्री और राज्य सरकार इस पर आगे क्या कदम उठाते हैं।